वो कौन सा प्रधानमंत्री था, जिसने दो बार घटाई अपने मंत्रियों की सैलरी, क्या थी वजह

हाइलाइट्स

तब देश में कैबिनेट मंत्रियों की सैलरी 3000 रुपए प्रति माह तय की गई
पीएम के वेतन को इससे दोगुना करने का सुझाव दिया तो इसका विरोध खुद नेहरू ने किया
नेहरू ने इसके बाद दो बार सबकी स्वैच्छा से अपनी और मंत्रियों की सैलरी घटाई

आजादी के बाद से भारत में सांसदों और मंत्रियों के वेतन में 250 गुना से ज्यादा की बढोतरी हुई है, क्या आपको मालूम है कि जब पहली बार मंत्रियों और प्रधानमंत्री का वेतन तय किया जाना था तो ये कैसे किया गया. प्रधानमंत्री के वेतन को जब तय करने की बात आई तो ये सुझाव भी दिया गया कि उसका वेतन केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों के वेतन से तीन गुना ज्यादा तो होना ही चाहिए, लेकिन ये बात क्यों नहीं मानी गई. बल्कि ये भी हुआ कि जब प्रधानमंत्री और मंत्रियों का वेतन फिक्स कर दिया गया तो इसमें दो बार क्यों कटौती की गई.

इसका जिक्र देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निजी सचिव रहे एमओ मथाई (MO Mathai) ने अपनी किताब “रेमिनिसेंसेज ऑफ नेहरू एज” (Reminiscences of the Nehru Age) में किया. वह करीब 20 बरसों तक उनके निजी सचिव रहे. उस जमाने में वह काफी ताकतवर शख्सियत समझे जाते थे.

इस किताब में कई जगह मथाई ने नेहरू की तीव्र आलोचना की तो कई जगह तारीफ. कई जगह उन्होंने तटस्थ होते हुए वो बातें लिखीं, जो नेहरू के साथ रहते हुए उनकी जीवनशैली, दृष्टिकोण और लोगों से आपसी व्यवहार में देखीं.

जब नेहरू देश के प्रधानमंत्री बने तो बड़ा मुद्दा ये था कि उनकी सैलरी क्या होगी. इस बारे में नेहरू ने कभी कोई पहल खुद से नहीं की. हालांकि उनकी कैबिनेट के कई मंत्रियों को लगता था कि जिस तरह ब्रिटेन का प्रधानमंत्री अपने कैबिनेट मंत्रियों की तुलना में दोगुना वेतन और अन्य सुविधाएं पाता है, वैसा ही भारत में भी होना चाहिए.

नेहरू ने मंत्री के बराबर तनख्वाह ली
तब देश में कैबिनेट मंत्रियों की सैलरी 3000 रुपए प्रति माह तय की गई. जब नेहरू कैबिनेट के वरिष्ठ सदस्य एन गोपालस्वामी आयंगर ने संसद में पीएम के वेतन को दोगुना करने का सुझाव दिया तो इसका एक ही शख्स ने विरोध किया, वो खुद नेहरू थे, जिन्हें ये कतई मंजूर नहीं था. आखिरकार नेहरू ने सैलरी के रूप में 3000 रुपए लेना स्वीकार किया, जितना वेतन एक कैबिनेट मंत्री का था.

इसके बाद नेहरू से कहा गया कि उन्हें कम से कम 500 रुपए का टैक्स फ्री एंटरटेनमेंट अलाउंस तो मिलना चाहिए. जिस तरह ब्रिटेन में प्रधानमंत्री को मिलता है, नेहरू ने साफतौर पर इसे भी ठुकरा दिया.

दो बार अपनी और मंत्रियों की सैलरी में कटौती की
नेहरू ने इसके बाद दो बार सबकी स्वैच्छा से अपनी और मंत्रियों की सैलरी घटाई. पहले ये सैलरी 3000 से 2,225 रुपए की गई. तब भी उन्हें लगा कि शायद ये वेतन भी वो लोग ज्यादा ले रहे हैं. इसमें और कटौती करके तब वेतन को 2000 रुपया प्रति माह किया गया. ये काम तब किया गया था जबकि रुपए का अवमूल्यन शुरू हो चुका था और मंत्रियों का ज्यादा वेतन और अन्य सुविधाएं देने का दबाव पड़ रहा था.

रिटायरमेंट पर पेंशन और सुविधा भी नहीं लेना चाहते थे 
मथाई ने अपनी किताब के चैप्टर 14 “द प्राइम मिनिस्टर्स हाउस” में ये भी लिखा कि नेहरू ने केवल ज्यादा वेतन और अलाउंस लेने से ही मना नहीं किया बल्कि उस सुझाव को भी खारिज किया कि ब्रिटेन की तरह ऐसा कानून बनाया जाए, जिसमें प्रधानमंत्री को रिटायर होने के बाद पर्याप्त पेंशन और सुविधाएं हासिल हो सकें.

मथाई ने लिखा, “मैं डर रहा था कि नेहरू इस मामले में बहुत आत्मपरक हो रहे हैं. वो केवल अपने बारे में सोच रहे हैं. उनका गर्वीलापन उन्हें ऐसा करने से रोक रहा है. उन्हें आत्मविश्वास था कि वो अपनी लेखनी  से ही पैसा कमाकर आरामदायक जिंदगी जी सकते हैं. ये बात उन्होंने मुझसे कही भी. “

नेहरू के निजी सचिव ने आगे लिखा, “मैने उनसे कहा कि अगर भविष्य में उनकी जगह कोई गरीब व्यक्ति प्रधानमंत्री बनता है तो उन्हें उसके बारे में भी सोचना चाहिए, इस बारे में संसद के विचार पर ध्यान देना चाहिए, बेशक अगर उन्हें वो सुविधाएं नहीं चाहिए तो वो उन्हें ना लें. नेहरू इसके बाद भी इस मामले में आत्मपरक बने रहे. टस से मस भी नहीं हुए.”

नेहरू ने केवल ज्यादा वेतन और अलाउंस लेने से ही मना नहीं किया बल्कि उन्होंने उस सुझाव को भी खारिज किया कि ब्रिटेन की तरह एक कानून बनाया जाए, जिसमें प्रधानमंत्री को रिटायर होने के बाद पर्याप्त पेंशन और सुविधाएं हासिल हों.

नेहरू को चार कमरों का मकान पसंद था  
जब देश आजाद हुआ तब वो यार्क रोड के घर में रह रहे थे. सितंबर 1946 में अंतरिम सरकार बनने के बाद नेहरू  17, यार्क रोड पर (अब मोतीलाल नेहरू मार्ग) स्थित चार कमरे के आवास में शिफ्ट कर चुके थे. नेहरू को ये आवास बहुत पसंद था. यहीं से वो 15 अगस्त 1947 के बाद लाल किले पर झंडा फहराने पहुंचे थे. यहीं से वो संसद जाते थे. हालांकि बंटवारे के बाद देश में जो हालात पैदा हुए, उससे नेहरू की जान को खतरा हो गया था. उनकी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने की स्थिति आ गई थी. नेहरू को पसंद नहीं था कि उनके घर में पुलिस हर ओर नज़र आए और उनसे मिलने आने वालों को पुलिस की सुरक्षा से गुजरकर आना पड़े.

लार्ड माउंटबेटन चाहते थे कि नेहरू को प्रधानमंत्री होने के नाते अब बड़े और सुरक्षित घर में शिफ्ट होना चाहिए ताकि वहां उनकी सुरक्षा व्यवस्था मुकम्मल तरीके से लागू की जा सके. माउंटबेटन ने इसके लिए नई दिल्ली में स्थित ब्रिटिश राज के कमांडर – इन -चीफ के आवास को माकूल माना. नेहरू वहां शिफ्ट होने के लिए राजी नहीं थे.

पटेल को सौंपा गया नेहरू से मकान शिफ्ट कराने का काम 
मथाई लिखते हैं कि ऐसे में नेहरू के आवास शिफ्ट कराने का जिम्मा माउंटबेटन ने तत्कालीन उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को सौंपा. पटेल एक दिन सुबह नेहरू के 17, यार्क रोड स्थित आवास पर पहुंचे.

नेहरू आजाद भारत के प्रधानमंत्री बनने के पहले से मोतीलाल नेहरू रोड पर 17 नंबर के घर में रहते थे. जब सुरक्षा के लिहाज से उन्हें ब्रिटिश राज के कमांडर इन चीफ का आवास (तीन मूर्ति भवन) दिया गया तो वहां जाने के इच्छुक नहीं थे. उन्हें अपना पुराना घर ही बेहतर लगता था.

पटेल ने तीनमूर्ति भवन जाने के लिए डाला  दबाव 
पटेल ने उनसे कहा, “वो पहले से दुखी हैं कि कि गांधीजी की सुरक्षा करने में विफल रहे. अब वह प्रधानमंत्री नेहरू की सुरक्षा को लेकर खुद पर कोई कलंक नहीं लगने देना चाहते. अगर नेहरू खतरे को समझने के बाद भी सुरक्षित भवन में शिफ्ट नहीं होते तो वो इस्तीफा दे देंगे.”

इस तरह पटेल ने नेहरू को नए आवास में शिफ्ट होने के लिए तैयार कर लिया. हालांकि नेहरू तैयार नहीं थे. उन्हें अपने 17, यार्क रोड के बंगले से  ज्यादा प्यार था. उन्होंने नाखुशी भी जताई. उन्हें अंदाजा था कि नए आवास में शिफ्ट कराने के लिए माउंटबेटन से लेकर सरदार पटेल तक ने उनकी घेराबंदी की है और इसमें उनके निजी सचिव मथाई की भी भूमिका है.

Tags: Parliament, Prime minister, Salary hike, Union Ministers

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